
कुयेड़ि हे कुयेड़ि
क्य ठौ नी तेरू क्वी ठिकाणू नी
क्य दगड़्या क्वी अपड़ु बिराणु नी
कभि खाई भटंांॅक पाड़ु की
कभि बगीगे तू गदन्यों मा
कभि उड़िगे हवा मा
कभि मिलिगे माटा मा
कभि बरखा मा रूजि
कभि सुखी घाम मा
बण बण भटकणी छै कै की खुद मा
दिन रात मगन छै कैकी खुद मा
कुयेड़ि हे कुयेड़ि
काव्य संग्रह ”कुरमुरी” से एक कविता
©ओम बधाणी