ह्यूं हिमालै सि चम्म, सूरज अगासै सि दम्म,
गढ़ देस मेरु, उत्तराखण्ड मेरु
चम्म चमकणू रओ, दम्म दमकणू रओ!
अन्न धन्नै पुंगड़्यों, चखळ-पखळ रओ
लैंदा पाणी तुरसै कि लरक्-तरक् रओ
बिट्टा पाखों मा झक्क घास लटकणू रओ
हैंसि उलार खत्यो, कल्यो बंटेणू रओ
त्यार, मेळा जातरा वीरेणां रओ
रांसु तांदी चैंफळा झमका तोड़ाणां रओ
बणु हैर्याळी रओ, डाळि जमणी रओ
जडि़ बुटि पराण दुन्या मा बांटणी रओ
फुलु कि घाट्यों देखि जिकुड़्यों स्येळि पड़्णीं रओ
छोया छंछेड़ों अमरीत, सदानि फुटणू रओ
गाड गदन्यों, जीवन बणीक बगणू रओ
पवित्र गंगा, जमुना सदानि बगणी रओ
वीर भड़ तेरी कोखी म जनम्णा रओ
देस का बाना खपणा मिटणा रओ
तीलु रामी सि नारी तु जनणू रओ।
गढ़ देस मेरू उत्तराखण्ड मेरू
चम्म चमकणू रओ, दम्म दमकणू रओ।
- काव्य संग्रह “कुरमुरी” से एक कविता