उत्तराखंड इनि पवित्र भूमि छ जख गंगा,यमुना ,गंग¨त्री,यमन¨त्री, बद्रीनाथ,केदारनाथ छन जख हरी कु द्वार ,शिव का कैलाश छ, जख बटि पांडवु न स्वर्गार¨हण करि जख जन्म लेणु मनख्यों क जन्मु-जन्मुं क पुण्य¨ं क प्रसाद कु फल ह¨ंदु जख मनखि देव तुल्य छ अर ज्व भूमि देव भूमि बोले जांदि जितना विशाल इस भूमि का आध्यात्मिक स्वरुप है उतना ही समृद्ध और विशाल यह राज्य सांस्कृतिक रुप से है यहाँ बारह महीने में सभी छ ऋतुओं में त्य©हार नाच गाना ह¨ता है हर छ¨टी बड़ी ख़ुशी सबके साथ मिलकर बांटी जाती है त¨ दुःख में सभी की आँखें छलकती हैं और इन भावनाओं क¨ व्यक्त करने का माध्यम ह¨ते हैं गीत यहाँ कण -कण में गीत संगीत है तभी त¨ देवताओं क¨ जागृत करना ह¨ त¨ जगर लगाये जाते हैं देवताओं से मंगल कामना हेतु मंगल गाये जाते हैं और बीर -भड¨ं की बीर गाथा का बखान करना ह¨ त¨ पवाडे लगाये जाते हैं और इन्ही गीतों में एक गीत है बाजूबंद।

बाजूबंद तात्कालिक रूप से रचा जानेवाला लोककाव्य है।ये गीत परिस्थिति के अनुकूल और आवश्यकता के अनुसार तत्काल रचे जाते हैं। इतना जरूर है कि कुछ उक्तियाँ अपनी विशिष्टता के कारण रूढ़ हो जाती हैं और उन्हें नायक-नायिका प्रायः अपनी आवश्यकता के अनुसार अपने अनुकूल बना लेते हैं। मुख्यतः प्रेम की स्वीकृति या अस्वीकृति बाजूबंद का स्वरूप निर्धारित करती है। अधिकांश बाजूबंदों के श्रीगणेश में पुरूषों का हाथ होता है। वही रूप के आकर्षण में बद्ध होकर अपने प्रेम-भाव को मुखर करता है। परिचितों के बीच बाजूबंद का प्रारंभ एक भिन्न ढंग से होता है किंतु अपरिचित व्यक्ति में पटुता अपेक्षित होती है। जब वह सहमति प्राप्त कर लेता है तो उनके प्रारंभिक संवाद प्रायः परिचयात्मक होते हैं जिसमें उनके गांव,नाम आदि के संबंध में कौतूहल प्रकट किया जाता है और नायिका सीधा-सा उत्तर देती नहीं दिखती है:बांज काटने वाली लड़की किस गांव की होगी ? किसी भी गांव की हंू मैं,तू पूछ कर क्या करेगा बाजूबंदों मे स्त्री-पुरूष संबंधों का बड़ी सुन्दरता से वर्णन मिलता है, तू मेरी धरती है, मैं तेरा आकाश। तू उड़ती हुई चिडि़या है, मैं गंुजन करता भौंरा। तू गले की घंटी है, मैं घंटी को बांधने वाली डोरी। तू मेरा खजाना है, मैं खजाने की ताली’। इस वियोग के पीछे पति या प्रेमी का परदेशगमन मुख्य होता हैं। परदेशगमन का कारण निर्धनता हैं ’गरीबों के छोकरों का वनवासी जोग (भाग्य) होता हैं । साहूकार का कर्ज चढ गया हैं,परदेश जाना पड गया । नाक की नथ दूंगी, सुआ, तू परदेश न जा । नाक की नथ से तो व्याज भी पूरा नहीं होगा । मैं पर्वत शिखर पर के सूरज की तरह जल्दी लौट आऊंगा । दुख-दर्द मेरे लिए हैं तू हंसना मत छोडना । ढेर सारी संात्वना के बावजूद इसी तरह दिन निकलते जाते हैं केवल प्रतीक्षा शेष रह जाती हैं ।वियोग की यह पीडा प्रायः बिछुडन के अवसर वर व्यक्त होती हैं, किन्तु प्रेमियों के बीच सुनने के के लिए और भी पीडाएं होती हैं अनमेल विवाह,सास के अत्याचार, गरीबी साहूकारों के तकाजे जैसी बहुत सी बातें होती हैं जो काम पर खटती हुई विवश नारी प्रायः सभी प्रकार के बाजूबंदो में व्यक्त करते दिखाई देती हैः ससुराल वालो का बुरा हो कि दो -दो भैंसे पाल रखी है

बाजूबंदो में प्रेम,जीवन दर्शन, सौन्दर्य,वियोग,व पीड़ा की एक अंतः सलिला का प्रवाह सत्रिहित होता है, पर पुरूष की ओर से उनका मुल स्वर रूप और उसका भोग ही रहता है। रूप सौंदर्य की आराधना बाजुबंद गीतो का मूख्य विषय है। वस्तुतः रूप प्रेम की चेतना का पहला विषय होता है क्योकि रूप की बाहा रेखओ पर ही ध्यान पहले जाता है। बाजूबंद केवल डेढ पक्तियो का छंद होने के कारण रूप का समग्र चित्र प्रस्तुत करने मेें असमर्थ होता है, ंिकंतु उसमंे अंग -प्रत्यंगों और हाव भावो के चित्र बहुत सुंदर होते हैं हैं जो गेहुं बोते प्रारम्भ होता हैं और बालियां काटते टूट जाता हैं संक्षेप में बाजूबंद ने प्रेम के वासनात्मक रूप को याथार्थ के धरातल पर भी देखा गया हैं और आदर्श के स्तर पर उसकी ऊंचाई भी आंकी गई हैं उसमें अनुभूत सत्य भी व्यक्त हुआ हैं और अनुभवगम्य साधना भी इनमें सजीवता और सर्वसत्ता दोनों हैं साथ ही सूक्तियां ज्ञानगर्भित भी हैं समाज विशेष में प्रचलित प्रेम की अवधारणा ही लहीं व्यक्ति की परिस्थियां भी उनसे उजागर होती हैं उन्हें सहज वार्तालाप अथवा संवाद के रूप देखा जा सकता हैं
वाजूबन्द स्वरूप/शैली
शैली दृष्टि से बाजूबन्द डेढ़ चरण का मुक्तक होता हैं पहली पंक्ति दूसरी पंक्ति से सम्बन्धित नहीं होती हैं वह केवल ’’तुक’’ मिलाने के लिए होती हैं और आधी होती हैं मूल भाव दूसरी पंक्ति में ही होता हैं तथा दोनों पंक्तियों के मिलने पर गीत संगीत पूरा होता हैं ।
हलाया त आम /झिट खडी हवैजा मैणा त्वै से मेरों काम
गैणी रीटे बाज /तू कखन आयी सुवा मैं खुद्यौण आज
बाजूबन्द तात्कालिक रूप से रचा जाने वाला काव्य हैं ये गीत परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार तत्काल रचे जाते हैं बाजूबन्द मुख्य रूप से संवाद गीत हैं घने वनों में जब नायिका अर्थात कोई घसेरी (घास काटने वाली सुन्दरी) अपने उद्गारों को बाजूबन्द गाकर व्यक्त करती हैं तो दूर कोई दूसरी घसेरी उसकी पीडा को अपनी पीडा मानकर उत्तर गाती हैं और सवाल जवाब का सिल-सिला चल पडता हैं और फिर दोनों एक दूसरे से अपना-अपना दर्द बांटकर मन हल्का कर लेती हैं ।
गाडु लाया तर ।/बार सेना त्यार स्वामी नि ऐना घर ।।
रैंसि खेली पैंसी ।/सैसर्यों कु मड् मरी दुई धरीन भैंसी ।।
उक्त गीत में पहली गायिका कहती हैं कि गदेरों पर पुल बांधे गये सारे त्यौहार आकर चले गये पर मेरे स्वामी घर नहीं आये वहीं दूसरी गायिका का अपना दर्द है और पहली गायिका का गीत सुनकर वह कहती है, मेरे ससुराल वालों का मरे जिन्होंनंे दो भैंस रखी हुई है। बाजूबंद के लिए गढ़वाल में कहीं कहीं दुआ शब्द का प्रयोग भी होता है। परन्तु दो पक्तियेां के मुक्तक होने के नाते बाजूबंद दोहे की शर्त का पालन पूरी तरह नही करता परन्तु फिर भी कुछ शर्तें पूरी तो करता ही है। यह छौपती से रूप विधान का लय से भिन्न है। साथ ही बाजूबंद का समूह या नृत्य से कोई सबंध नही होता,बाजूबंद समुदायिक मनोरंजन का आधार न होकर स्व सुख या स्व तुष्ठि के लिए गाये जाने वाला काव्य है जो वनों के एकांत में अनेको लोगों के कानों मे भले ही पड़ जाय पर संबोधित केवल एक को ही होता है। परन्तु जिसकों सबोंधित है उसका स्वरूप इतना ऊंचा होता है। कि एक दुसरे के लिए श्राव्य हो।
बाजूबंद का विषय-
उत्तराखड़ सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक समृद्ध प्रान्त है यहां रासों,तांदि,छोपती,लामण, छूड़े, पंड़वति, जागर,मँागल,झोडा,चाचड़ी, छपेली, झुमेला ,थडि़या, चैफला आदि अनेकों प्रकार के गीत गाये जाते है लेकिन इन सभी गीतों का विषय प्रायः स्वयः का एक निश्चित विषय होता है। जैसे जागर देव जागृत करने के गीत हैं। पंड़वति पांडवो के गीत है। चैफाल ऋंगार गीत है। आदि विषय है और न एक भाव ये गीत क्योंकि गायक की प्रकृति पर निर्भर है। तो कभी इनमें विरह झलकता है तो कभी रोमांस तो कभी दर्शन तो कभी ऋंगार आदि अनेकों विषय व भाव इन गीतों में व्याप्त है। इन गीतों में कभी विरह मिलता है। कभी ऋंगार कभी जीवन दर्शन झलकता है तो कभी वासना।
बाजूबंद का संगीत
बाजूबंद का संगीत तत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है ये गीत ताल बद्ध नही होते बल्कि ये गीत लंबी लय में गाये जाने वाले गीत है।जो वनों के सन्नाटे को ही नही तोड़ते बल्कि उन्हें गुंजायमान भी रखते है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बाजूबंद गीत गाने का अंदाज होता है जो कि क्षेत्र की बोली पर निर्भर करता है। उत्तरकाशी के टिहरी से लगे क्षेत्र व टकनौर (गंगाघाटी क्षेत्र) में बाजूबंद गाने का एक ही तरीका है। इसे क्षेत्र में जो कि मेरा शोध क्षेत्र है ये गाये जाने वाले बाजूबंद का संगीत कुछ निम्न प्रकार से है। जिसका मैने स्वर लिपि देने की कोशिश की है।
गीत- घुघता कि घोली लो
घास काटदारी नौनी कै गवाँ की होली लो
हे रूमैला बौ

गीत क बोल- घु घ,,,,,,,,,,,,,,,,,ता,,,,,,,,,,,कि,,,,,,,,,,,,घो,,,,,,,,,,,,ली लो,,,,,,,
स्वर- म प,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मरे रे सा म प ध,,,,,,,,,घ म,,,,,,,,,,,

गीत क बोल- घा,,,,,,,,,,स,,,,,,, का,,,,,,,,ट,,,,,,,,दा,,,,री,,,,,,नौ,,,,,,,,नी
स्वर- मा,,,,,,,,,,प,,,,,,,,,,,म,,,,,,,,,,,रे,,,,,,,,,,,,,सा,,,,,,रे,,,,,,,म,,,,,म,,,,,,भ,,,,,भ,,,

गीत क बोल- कै ग वाँ कि हो ली,,,,,लो
स्वर- म म रे स प,,,,,,ध,,,,,पम

गीत क बोल- हे,,,,,,,,,,रू मैला बौ ,,,,,
स्वर- मप,,,,,,,,पमरेस,,,,,,, प,,,,,,,,,,,,,,,,
यहां बाजूबंद गीतों के अंत में हे रूमैला बौ, या तारो छुमा बौ आदि जोड़ने की परंपरा है जिसका गीत से कोई संबध नही होता है बस यह अगली पंक्ति गाने या प्रश्न का उत्तर देने का संकेत है बाजूबंद गाने वाली घसेरी के गीत सुनकर दूर से सुन रहे युवक व्यंगात्मक हंसी हंसते है। इन्हे स्थानीया भाषा में खिखोला कहा जाता है। इसी प्रकार यदि कोई पुरूष बाजूबंद गाता है और दूर से कोई युवतियों का समूह सुन ले तो वो खिखोले मारती है। पर गायक,गायिका इससे नाराज नही होते है यहां बाजूबंद पर हंसना खिखाला कहते है।
बाजूबंद के गायक
बाजूबंद समूह में नही बल्कि एकल गायन वाला गीत है। जो कि आत्म तृप्ति के लिए गाया जाता है। विशेष कर जब मनुष्य अकेला होता है। तो वह अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए कुछ गुनगुनाता है यह गीत कुछ ऐेसे ही समय में गाये जाने वाले गीत होतें है। ऊंचे पहाड़ों पर जहां के घने जंगलों को घूप भी नही भेद पाती वहां घसेरी अपने एकांकीपन को दूर करने के लिए बाजूबंद गाती है। और दुसरे पाखे (पहाड़ी का ढलान/जंगल) पर दुसरी घसेरी उसे झठ से अपनी सखी बना लेती है और इस प्रकार दोनो का एकाकी पन दूर हो जाता है। इसी प्रकार घने जंगलों में लकडि़याँ बीनता या भेंड़ बकरियों को चुंगाता कोई पुरूश भी खुद को अकेला महसुस नही करता है तो बाजूबंद गाकर अपने एकांत को तोड़ता है। इस प्रकार बाजूबंद के गायक मूलतः घसेरी चरवाहें ही है। जिनकी मधुर स्वर लहरियां बनांे के सन्नाटे को ही नही तोङती बल्कि उन्हें गुंजयामान भी रखती है।
1 बाजूबंद गीत¨ं में विरह
पहाड़¨ं में जीवन भी पहाड़ जैसा ही है इसीलिए विरह यहाँ के गीत¨ं में अधिक दिखाई देता है दर्द पीड़ा उत्तराखंड के लगभग सभी गीत¨ं में स्पष्ट दृष्टि ग¨चार ह¨ता है और बाजूबंद में सबसे अधिक परदेश न©करी के लिए गए पति की याद में अपनी पीड़ा क¨ बाजूबंद गा कर मिटाने की क¨शिश करती सुना;ी
बासे ता कुखुड़ी /जुगु बीती नि देखि स्वामी की मुखुडी
अर्थात युग बीत गया है पर स्वामी का मुख नहीं देखा है?
ग्य¨ं जाऊ की सारी/कनी ह¨ली मेरी सुवा खुद लगीं भारी
अर्थात परदेश में अपनी पत्नी की याद में पति भी दुखी है और कह रहा है की मेरी सुवा कैसी ह¨गी मुझे उसकी बहुत खुदलगी है अर्थात याद आ रही है ।

2 बाजूबंद गीत¨ं में प्रेम- निरूपण
बाजूबंद गीत¨ं में श्रृंगार भी प्रमुखता से दिखाई देता है इनमे प्रेम के विविध रूप मिलते हैं यहाँ प्रेम उभयपक्षी और बहुपक्षी है ग्राम्य जीवन का निश्छल अटूट एकात्म प्रेम भाव बालपन से य©वन वार्धक्य तक पहुँच कर और भी पुष्ट एवं और भी परिपक्व ह¨ जाता है
भीमला की लक/बालपन बीटी छ¨री त्वैमा मेरी टक
अर्थात हे सुंदरी मै त¨ बालपन से ही तुझे प्यार करता हूँ
छाला दूधै लासी /कैलासुं न आय¨ं सुवा त्वे फूली की बासी
अर्थात हे सुंदरी मै ऊंचे कैलाश से तुझ सुन्दर फूल की महक ले ने आया हूँ
र¨टी क¨ नरम /उन्डू कर दायीं हाती दे द्य¨लू धरम
अर्थात हे प्रिये आपना दायाँ हाथ मेरे हाथ¨ं में रख मै तुझे प्रेम का बचन देता हूँ की सदा -सदा तुझे सच्चा प्रेम करूंगा
3 बाजूबंद गीत¨ं में स©न्दर्य वर्णन
भारतीय परम्परा में स©न्दर्य चित्रण का आधार नख शिख वर्णन ही रहा है नारी के स©न्दर्य का वर्णन उसके केश जूड़ा नेत्र नासिका मुख दांत दांत भुजा चाल
गुड खाय¨ माख्य¨ं न /और खान्दान घीची न तू खांदी आख्य¨ं न
अर्थात हे मृगनयनी तुम्हारी आँखें इतनी सुन्दर हैं की तुम आपने नैन¨ के तीर¨ं से सामने वाले क¨ हर लेती ह¨
बुनी जाली तांद /रूपकी आन्छारी जन ऐना चम्लांद
तू त¨ अप्सराओं से भी सुन्दर है ऐसे चमकती जैसे धुप में आईना चमकता है

4 बाजूबंद गीत¨ं में प्रकृति वर्णन
प्रकृति मानव की आदि – सहचरी है प्रकृतिमानव की प्रेरणा और स©न्दर्य विधायानी शक्ति है बाजूबंद के गायक ल¨ककवि की सूक्ष्म दृष्टि हिमालय वन-पर्वत शिखर-घाटी नदी-नाले खेत खलियान वनस्पति पशु पक्षी सभी क¨ अत्यंत आत्मीयता से देखती है संय¨ग काल की हंसती खिलखिलाती
प्रकृति के अनेक रूप¨ं में दर्शन ह¨ते हैं
आणि मुनि माणी/दुवी दिन च©मासु सुवा पणु गाड पाणी
च©मासे में सुवा द¨ दिन¨ं ही नदी में पानी रहता है
इन खणी मीन /गाडू पड़े ठंडी छाया धारु दुबे दिन
अर्थात नदिय¨ं के ऊपर ठंडी छाया पड़ी शिखर¨ं पर दिन डूब गया
5 बाजूबंद गीत¨ं में जीवन दर्शन
बाजु बंद गीत¨ं में गायक के ऊपर क¨ई बंदिश नहीं है इसीलिए इसके विषय अनंत है ज¨ की गायक के मन¨ भाव¨ं पर निर्भर है इसीलिए कहीं कहीं जीवन दर्शन भी दिखाई देता है
ग©ड़ी क¨ माखन /दुनियां मरी जणू क्या लिजाणु यखन
अर्थात इस मिथ्या संसार से हमें मर कर चल जाना है यहाँ से क्या लेकर जाना है
पकी जला केळा/द्वी दिन का हिन्दा सुवा जवानी का मेळा
अर्थात ये जवानी त¨ सिर्फ द¨ दिन के लिए है

मिश्रिति पारंपरिक बाजूबंद गीत
बाजूबंद की पहली पंग्ति केवल तुक बंदी के लिए ह¨ती इसका क¨इ भावार्थ नहीं ह¨ता है यहाँ केवल दूसरी लाइन क¨ पूरा करती है मूल रहस्य दूसरी पंग्ति में ही ह¨ता है इसलिए मै यहाँ पर केवल दूसरी पंग्ति का ही अर्थ दे रहा हूँ
हलायता आम /जनि कनी माया चुली तैला तापी घाम
जैसे कैसे साधरण प्रेम से त¨ बैठकर धूपसेकना अच्छा
पूजे ता मसाण/द्वी बचन बाजू लैदे घिची की रसाण
हे प्रिये तू अपने मुख से बाजूबंद के द¨ बचन ब¨ल दे अपनी मीठी आवाज सुना दे
सुतरी का धागा /द्वी बचन बाजू लैदे ज्यू आलू जगा
द¨ बचन बाजूबंद के ब¨लदे मेरा मन शांत ह¨ जायेगा
सेर डाळे कूल /बौ प्यार¨ द्युर ह¨ंद¨ ट¨पी प्यार¨ फूल
भाभी क¨ देवर प्यारा ह¨ता है और ट¨पी पर फूल श¨भा देता है
नर्युला की गिरी /दुनिया जाणक ब©ळेणी रणु डंगसीरी
हे सुंदरी ये दुनिया त¨ बर्बादी की ओर जा रही है अर्थात इस दुनिया का क¨ई भर¨सा नहीं है इसलिए संभल के रहना
नथुली पंवार /मायादार माया बाँच नि बांच्द गंवार
ज¨ प्रेम करने वाले ह¨ते हैं व¨ ही प्रेम की भाषा समझते हैं गंवार नहीं
पाणी क¨ पनेर¨ /तू नि लाली माया ता मुल्क घनेर¨
हे सुंदरी यदि तू मेरा प्रेम स्वीकार नहीं कैरेगी त¨ पूरा मुल्क पड़ा है तू रूप के अहंकार में मत रह।
पाकी ता आडू /मैंन जाणि सीधी साधी तू बड़ी उजाड़ू
मै त¨ समझ रहा था तू सीधी साधी है लेकिन तू त¨ बहुत गुस्सैल मिजाज है
मर्चु की पीरी /भ्ह©ं कुछु ब¨लालू त घिच्ची द्य¨ल¨ चीरी
हे छ¨करे यदि ऊट पटांग ब¨ले गा त¨ तेरा मंुह चीर दूँगी
ग्वैरू मा की ग्वैन/ऐना मति पाणी बल रखी जाणी कैन
शीशे के ऊपर भी कभी पानी टिक पाया है
तांदुला की तांदी /माया टूटी फंडू जांदी कांगसा नि जांदी
प्रेम त¨ टूट जाता है लेकिन प्रेमी के लिए मन की तृष्णा कभी नहीं जाती
लंगलंगी साईं /ऊँची डंडी निसी कुलु त्वै मिलण तांईं
हे प्यारी मै तुझ से मिलने के लिए ऊंचे पहाड़¨ं क¨ झुका दूंगा
बटणु क¨ काज /त्वे इन घूम©ल¨ सुवा गैणि जसी बाज
हे सुंदरी तू मेरी ह¨जा मै तुजे पूरा संसार घुमाऊँगा जैसे आकाश में बाज घूमता है
साग लाये भुजी /पत्थर पराण छई बर्खन भी नि रुझी
तू त¨ पत्थर है ज¨ मेरे आंसुओं की बारिश से भी नहीं पसीजा
धणिया क¨ बीज /डांडू की आन्छरी म¨हि तू छाई क्या चीज
हे प्रिये मैंने त¨ अप्सराओं क¨ भी म¨हित किया है त¨ तू क्या चीज है
सेंतुला कि बीत /माया वाया फंडू फुक पिछ्नै रीट
प्रेम व्रेम किनारे रख मेरे पहले पीछे चक्कर लगा
अख¨डु कि साईं /राजी रख¨ विधाता फेर मिलण ताईं
ईश्वर जीवित रखे ताकि हम फिर मिल सकें
ट¨पली कि मगजी /नथुली न सांन करी त्वैन नि समझी
हे स्वामी मैंने तुम्हें अपनी नथ हिला कर इशारा किया था पर आप नहीं समझे
काटि त खडी़क /गाडू बागी आय¨ं सुवा धारु रड़़ीक
हे प्रिये मै तुमसे मिलने क¨ गदेर¨ं में बहकर और पहाड़¨ं में फिसल कर आया
सम¨दारी फेण/मेरी पेईं घिची प्यारी कै न देई पेण
हे प्यारी तेरे जिन सुन्दर अधर¨ं का चुम्बन मैंने लिया है उन अदर¨ं का चुम्बन किसी और क¨ मत लेने देना

सर्वाधिकार सुरक्षित© . ओम बधाणी

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